Tuesday, February 17, 2015

इ मनुष्य त मझधारी अछि


इ मनुष्य त मझधारी अछि।


मोन त उल्लास के तरंग से आतुर अछि
मुदा, विचित्र निश्तब्धता के साथी अछी
कलरव सुनलौं पंछी के,
देखलौं क्षितिज पर नीरस मेघ
मोन त व्याकुल अछि
गोधूलि के बेला में
मोन कियाक प्रताड़ित अछि

सब पंछी उड़ल अपन व्यवहार
किछ त एहि में परिभाषित अछि
केयो नहीं बिसरल रीत अपन
हम सब कियाक नहीं अनुगामी छी
डगर कतय नगर कतय
नीर अपन नहीं जानि
नहीं किछ व्यवहारिक अछि
इ मनुष्य त मझधारी अछि

किछ त मनुष्यक दोष अछि
किछ त मोनक प्रयोग अछि
बिसरलौं सब अपन जिम्मेवारी
अपन स्वार्थक क्रोध बड्ड भारी
मूल नहीं घर नहीं
गाम नहीं, किनहुँ नहीं
किछ के नहि अधिकारी अछि
इ मनुष्य त मझधारी अछि

मोन त उल्लास के तरंग से आतुर अछि
मुदा, विचित्र निश्तब्धता के साथी अछी
कलरव सुनलौं पंछी के,
देखलौं क्षितिज पर नीरस मेघ
मोन त व्याकुल अछि
गोधूलि के बेला में
मोन कियाक प्रताड़ित अछि

इ मनुष्य त मझधारी अछि।  

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