Saturday, September 22, 2012

निर्मल अद्भुत प्रत्यक्ष


निर्मल  अद्भुत  प्रत्यक्ष  



मैंने समझाया अपने आप को.
नहीं देख सकता उस अदृस्य को.
वो तो अद्भुत है , पालक है जगत का जो
उस अनंत परमेश्वर को 
नहीं देख सकता मैं , उस अदृश्य को.
जो है इस नश्वर संसार की सब बातो में.

की उसने रचना सबकी..
है जगत का कारक जो,
जिसने सबको है भरमाया,
उस निरंतर प्रकृति के सृजनहार को,
नहीं देख सकता उस अदृस्य को.
जो है इस नश्वर संसार की सब बातो में.

पर क्या सब नहीं हैं उसके 
प्रत्यक्ष प्रकृति के अनुपम  सृंगार  को
देख सकता हूँ उसके सारे उपहार को
उस निरंतर प्रकृति के सृजनहार को,
पर , नहीं देख सकता उस अदृस्य को.
जो है इस नश्वर संसार की सब बातो में.

रमा हुआ है जो ब्रम्हांड में 
योगियों के महायोग में,
और मुनियों के संसार में.
कोटि कोटि नित नूतन व्यवहार में 
नहीं देख सकता उस अदृस्य को.
जो है इस नश्वर संसार की सब बातो में.

वो है इस माया में 
वो है इस चराचर जगत के आधार में
वो है प्रकृति के सृंगार में
नर के नारायण में 
पर , नहीं देख सकता उस अदृस्य को
जो है इस नश्वर संसार की सब बातो में.

अभी नहीं समझा में इन गूढ़ बातों को
अभी नहीं जाना मैंने इस ज्ञान को
अभी तो समझने की कोशिश में हूँ अपने छोटे से संसार को
जो हर समय कुछ अनुभूति देता है ,
नए नए प्रयोग के आधार में 
नहीं देख सकता उस अदृस्य को
जो है इस नश्वर संसार की सब बातो में.

है वो सामान रूप से इस ब्रह्माण्ड में 
है मेरे आस पास हर समय अनेकों रूपों में
पर नहीं जान सकता उसे ,
दिए हैं अनगिनत अनुभूति 
दिए हैं विभिन्न विश्वासों के आधार 
और दिए हैं कितने अविश्वाश भी
नहीं देख सकता उस अदृस्य को
जो है इस नश्वर संसार की सब बातो में.

वो तो अमिट, अनंत , अनश्वर और न जाने क्या क्या है
वो तो हर जगह , समय से परे है.
देखने के लिए शायद मेरे पास नहीं है वो निर्मल विचार 
क्योंकि मैं मनुष्यों हूँ, दूषित विचारों से ग्रसित हूँ,
है वो निर्मल , है वो अद्भुत , है वो प्रत्यक्ष 
पर मैं हिं हूँ अपने विचरों और कर्मो से दूषित 
इसलिए नहीं देख सकता उस अदृस्य को
जो है इस नश्वर संसार की सब बातो में.

Sunday, September 16, 2012

इ बरखा में


इ बरखा में 

भेलौं अपन घर से दूर , रहलौं अपन गाम से दूर
भेल झमाझम बरखा कलिः राती 
और हम एकसार रहलौं अपन घर से दूर 
मोन पडल बिटिया हमर,
मोन पडल कनिया हमर 
और अपन सब परिवार
केलों याद हम सब भगवन के 
केलों याद हम अपन आधार के
भेलौं अपन घर से दूर , रहलौं अपन गाम से दूर 

इ रिमझिम बरखा में 
इ रिमझिम सावन भादों में
रहलौं एकसार  हम 
अपन गाम से दूर 
अपन भगवन से दूर
भेलौं अपन घर से दूर , रहलौं अपन गाम से दूर 

किछ ज्यादा हिं मोन अछी बेचैन 
किछ ज्यादा हिं आत्मा भी अछी बेचैन 
बड़ा हिं अद्भुत पीड़ा अछी
नहीं जनि इ की थिक
हम अखन धरी नहीं बुझ्लौं  
भेलौं अपन घर से दूर , रहलौं अपन गाम से दूर 

पुकार्लौं हम अपन द्रवित ह्रदय से 
नहीं जनि हमर पुकार सुन्लौं की नहीं 
नहीं जान्लौं की भेल 
गुम भेल हमर पुकार 
गुम भेल हमर विचार 
शुन्य में छि हम
नै जनि की भेल 
इ बरखा में 
भेलौं अपन घर से दूर , रहलौं अपन गाम से दूर