Tuesday, February 24, 2015

उन उदास रंगों में रमना चाहता हूँ


उन उदास रंगों में रमना चाहता हूँ

कुछ कहना चाहता हूँ
इस साँझ के झरोके में
क्षितिज के पार
उन उदास रंगों में रमना चाहता हूँ।

छितराई हुई मैली सी इस साँझ में खोना चाहता हूँ
संध्या के प्रहर जब लाली अपने को समेटती है
उस पल में भरपूर उतारना चाहता हूँ
उन उदास रंगों में रमना चाहता हूँ।

प्रकृति के अबूझ विस्तार में
उषा से संध्या के राज में
जब जीवन खोता है
उस पल को समझना चाहता हूँ
उन उदास रंगों में रमना चाहता हूँ।

किरणों के समक्ष चमकते या डूबते
उन सभी विस्तारों को पाना चाहता हूँ
उन रंगो के परे अबूझ से विस्तृत
सभी नहीं तो कुछ ही सही
सीमाओं को जानना चाहता हूँ
उन उदास रंगों में रमना चाहता हूँ।

कुछ कहना चाहता हूँ
इस साँझ के झरोके में
क्षितिज के पार
उन उदास रंगों में रमना चाहता हूँ।  

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