Friday, February 27, 2015

कुछ दिनों से आँगन में चहचाहट नहीं


कुछ दिनों से आँगन में चहचाहट नहीं

कुछ दिनों से आँगन में चहचाहट नहीं,
कुछ दिनों से घर में कोई आदत नहीं है
अभी कुछ भी बिखरा नहीं
ये घर कुछ दिनों से अकेला है
इसमें कोई आहट नहीं।

चहुँ ओर नीरसता है
कही कोई मुस्कुराहट नहीं
इन दिनों गमलों में कोई फूल नहीं
और कहीं फूलों में सुरभि भी नहीं
ये घर कुछ दिनों से अकेला है
इसमें कोई आहट नहीं।

कुछ कहीं गुम है
जैसे कहीं कोई चाहत नहीं
काफी दिनों से शाखों पे नए कोंपले नहीं
कुछ दिनों से पत्तों में चटक रंग भी नहीं है
ये घर कुछ दिनों से अकेला है
इसमें कोई आहट नहीं।

मुस्कुराहटें भी अब आती नहीं
जैसे नदियों में पानी तो है
पर कलरव - कल कल की वाणी नहीं
तुम्हारी मासूम सी मुस्कुराहट के बिना,
मेरी बिटिया,
ये घर कुछ दिनों से अकेला है
इसमें कोई आहट नहीं।

वो तुम्हारी छोटी - छोटी शरारतें
नन्हे मीठे से सुर भरे बोल
तुम्हारे बिना, मेरी बिटिया
सब शुन्य है , कहीं कुछ सवाल नहीं
ये घर कुछ दिनों से अकेला है
इसमें कोई आहट नहीं।

Tuesday, February 24, 2015

उन उदास रंगों में रमना चाहता हूँ


उन उदास रंगों में रमना चाहता हूँ

कुछ कहना चाहता हूँ
इस साँझ के झरोके में
क्षितिज के पार
उन उदास रंगों में रमना चाहता हूँ।

छितराई हुई मैली सी इस साँझ में खोना चाहता हूँ
संध्या के प्रहर जब लाली अपने को समेटती है
उस पल में भरपूर उतारना चाहता हूँ
उन उदास रंगों में रमना चाहता हूँ।

प्रकृति के अबूझ विस्तार में
उषा से संध्या के राज में
जब जीवन खोता है
उस पल को समझना चाहता हूँ
उन उदास रंगों में रमना चाहता हूँ।

किरणों के समक्ष चमकते या डूबते
उन सभी विस्तारों को पाना चाहता हूँ
उन रंगो के परे अबूझ से विस्तृत
सभी नहीं तो कुछ ही सही
सीमाओं को जानना चाहता हूँ
उन उदास रंगों में रमना चाहता हूँ।

कुछ कहना चाहता हूँ
इस साँझ के झरोके में
क्षितिज के पार
उन उदास रंगों में रमना चाहता हूँ।  

Tuesday, February 17, 2015

इ मनुष्य त मझधारी अछि


इ मनुष्य त मझधारी अछि।


मोन त उल्लास के तरंग से आतुर अछि
मुदा, विचित्र निश्तब्धता के साथी अछी
कलरव सुनलौं पंछी के,
देखलौं क्षितिज पर नीरस मेघ
मोन त व्याकुल अछि
गोधूलि के बेला में
मोन कियाक प्रताड़ित अछि

सब पंछी उड़ल अपन व्यवहार
किछ त एहि में परिभाषित अछि
केयो नहीं बिसरल रीत अपन
हम सब कियाक नहीं अनुगामी छी
डगर कतय नगर कतय
नीर अपन नहीं जानि
नहीं किछ व्यवहारिक अछि
इ मनुष्य त मझधारी अछि

किछ त मनुष्यक दोष अछि
किछ त मोनक प्रयोग अछि
बिसरलौं सब अपन जिम्मेवारी
अपन स्वार्थक क्रोध बड्ड भारी
मूल नहीं घर नहीं
गाम नहीं, किनहुँ नहीं
किछ के नहि अधिकारी अछि
इ मनुष्य त मझधारी अछि

मोन त उल्लास के तरंग से आतुर अछि
मुदा, विचित्र निश्तब्धता के साथी अछी
कलरव सुनलौं पंछी के,
देखलौं क्षितिज पर नीरस मेघ
मोन त व्याकुल अछि
गोधूलि के बेला में
मोन कियाक प्रताड़ित अछि

इ मनुष्य त मझधारी अछि।