Friday, February 27, 2015

कुछ दिनों से आँगन में चहचाहट नहीं


कुछ दिनों से आँगन में चहचाहट नहीं

कुछ दिनों से आँगन में चहचाहट नहीं,
कुछ दिनों से घर में कोई आदत नहीं है
अभी कुछ भी बिखरा नहीं
ये घर कुछ दिनों से अकेला है
इसमें कोई आहट नहीं।

चहुँ ओर नीरसता है
कही कोई मुस्कुराहट नहीं
इन दिनों गमलों में कोई फूल नहीं
और कहीं फूलों में सुरभि भी नहीं
ये घर कुछ दिनों से अकेला है
इसमें कोई आहट नहीं।

कुछ कहीं गुम है
जैसे कहीं कोई चाहत नहीं
काफी दिनों से शाखों पे नए कोंपले नहीं
कुछ दिनों से पत्तों में चटक रंग भी नहीं है
ये घर कुछ दिनों से अकेला है
इसमें कोई आहट नहीं।

मुस्कुराहटें भी अब आती नहीं
जैसे नदियों में पानी तो है
पर कलरव - कल कल की वाणी नहीं
तुम्हारी मासूम सी मुस्कुराहट के बिना,
मेरी बिटिया,
ये घर कुछ दिनों से अकेला है
इसमें कोई आहट नहीं।

वो तुम्हारी छोटी - छोटी शरारतें
नन्हे मीठे से सुर भरे बोल
तुम्हारे बिना, मेरी बिटिया
सब शुन्य है , कहीं कुछ सवाल नहीं
ये घर कुछ दिनों से अकेला है
इसमें कोई आहट नहीं।

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