Sunday, March 10, 2013

कुम्भ की भीड़

समाचार में पढ़ा की कुम्भ के मेले में बहुत लोग , ज्यादातर बूढ़े खो गए हैं और राहत शिविर में अपनों की आस में दिन बीता रहे हैं .  उसी परिप्रेक्ष्य में कुछ पंक्तिया मन में आई .


कुम्भ की भीड़ 

कुम्भ की भीड़, ढूंढे फिर भी हम अपना नीड़ 
छोड़ गए वो, क्या आयेंगे वापस,
अपनाएंगे फिर से क्या , हो कर अधीर .

निकले घर से पुण्य कमाने , गंगा में डुबकी लगाने 
धुल गए पाप फिर भी क्यों नहीं हैं वो गंभीर ,
क्या कमी नहीं खलेगी उन्हें हमारी ,
क्या वो रह पाएंगे ?
नहीं बहायेंगे वो भी नीर .

अब इन बूढी आँखों में , दर्द है, पानी है और मन है अधीर 
हम जिनको कहते थे अपना , जिनमे देखा जीवन अपना 
दिया उन्होंने हि पीर , नहीं बहायेंगे वो भी नीर 

बूढी आँखें , झुका तन , कोई अब आस नहीं 
अब तो आये यमराज हि, ले चले अपने पास ही 
पर छोड़ दिया या भूल गए इसका कोई जवाब नहीं .

कुम्भ की भीड़, ढूंढे फिर भी हम अपना नीड़ 
छोड़ गए वो, क्या आयेंगे वापस,
अपनाएंगे फिर से क्या , हो कर अधीर .