Thursday, March 5, 2015

होली तो हो ली

होली तो हो ली

होली तो हो ली,
अब भी है क्या, कही मस्तों की टोली ?
अब है कटु बोली
या बची है,  होली की अद्भुत हंसी - ठिठोली ?

काले पुते रंगों का हाल
या बचा है सुर्ख लाल हुए गाल ?
न सत व्यवहार, सिर्फ व्यविचार
या कहीं है प्यार और मनुहार ?

बेतुके से गीतों की भीड़
या कहीं है फाग और फगुआ का नीड़ ?
कुछ ढूंढे बैठे खाली, या फिर
अपने अनतरमनं में बैठी नयी नवेली ?

देखें मतंगों की टोली
या बन बैठे मस्तो के हमजोली ?
कर ले रंगो से दुरी,
या नए रंग भर ले जैसे ये सतरंगी होली।