Thursday, February 27, 2014

सूक्ष्म और विराट में

सूक्ष्म और विराट में



अपने विराट स्वरूप मे 
अपने सूक्ष्म भाव मे,
अपनी असीम ब्रम्हांड मे
अपने इस छोटे से संसार मे.

कितने अनुतरित प्रश्न हैं
कितने अबुझ जाल हैं,
एक छोर मन का दामन,
एक छोर आत्मा का दामन,
बुद्धी कुबुद्धि के जाल मे,
मोह माया विवेक और ज्ञान के उलझे हालात मे,
अपनी असीम ब्रम्हांड मे
अपने इस छोटे से संसार मे.

ज्ञान की बातें और मन के भटकाओ मे,
कर्म की धरना और आत्मा के उत्थान मे,
जीवन के पूरे अनकहे पहचान मे,
उपर उठने के भरम मे,
अपनी असीम ब्रम्हांड मे
अपने इस छोटे से संसार मे.

कहाँ हो तुम और कहाँ हूँ मैं
इस पूरे पथ पर अपने सार मे,
किस माटी से किस रूप मे,
हे मेरे ईश्वर
हम हैं नश्वर
तुम्हारे इस संसार मे,
अपनी असीम ब्रम्हांड मे
अपने इस छोटे से संसार मे.

अपने विराट स्वरूप मे 
अपने सूक्ष्म भाव मे,
अपनी असीम ब्रम्हांड मे
अपने इस छोटे से संसार मे.