समाचार में पढ़ा की कुम्भ के मेले में बहुत लोग , ज्यादातर बूढ़े खो गए हैं और राहत शिविर में अपनों की आस में दिन बीता रहे हैं . उसी परिप्रेक्ष्य में कुछ पंक्तिया मन में आई .
कुम्भ की भीड़
कुम्भ की भीड़
कुम्भ की भीड़, ढूंढे फिर भी हम अपना नीड़
छोड़ गए वो, क्या आयेंगे वापस,
अपनाएंगे फिर से क्या , हो कर अधीर .
निकले घर से पुण्य कमाने , गंगा में डुबकी लगाने
धुल गए पाप फिर भी क्यों नहीं हैं वो गंभीर ,
क्या कमी नहीं खलेगी उन्हें हमारी ,
क्या वो रह पाएंगे ?
नहीं बहायेंगे वो भी नीर .
अब इन बूढी आँखों में , दर्द है, पानी है और मन है अधीर
हम जिनको कहते थे अपना , जिनमे देखा जीवन अपना
दिया उन्होंने हि पीर , नहीं बहायेंगे वो भी नीर
बूढी आँखें , झुका तन , कोई अब आस नहीं
अब तो आये यमराज हि, ले चले अपने पास ही
पर छोड़ दिया या भूल गए इसका कोई जवाब नहीं .
कुम्भ की भीड़, ढूंढे फिर भी हम अपना नीड़
छोड़ गए वो, क्या आयेंगे वापस,
अपनाएंगे फिर से क्या , हो कर अधीर .
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