Monday, April 27, 2015

धरती का ये विलाप

नेपाल बिहार और कुछ अन्य स्थानो पर भूकम्प के बाद जिंदगी काफी मर्माहत है. हताहतों के परिजनों को मेरी संवेदनाएं और उनके इस दुःख कम करने और उनका हौसला बढ़ने को कुछ पंक्तियाँ

धरती का ये विलाप
धरती ने किया अट्टहास
नया और ये दुख़दायी इतिहास
जीवन उजड़ा , घर टूटे
कितनो के जीवन छूटे
कहते जिसको अपना घर
वो चारदीवारी हुई अब एक कहर
नीड़ के लिया नीर बहाया
न जाने क्या क्या गंवाया।

मानवता को जो चोट लगी है
दुःख ने आज कहर है ढाया
अपनों से अपने का, पर ये हौसला
क्या और कौन परखेगा ?
उस पर्वत से भी ऊँची है
जिसको इस धरती ने आज डुलाया।

उठ जायेंगे जी जायेंगे
अपनों के संग मिल कर
फिर रम जायेंगे
नया कुछ ऐसा बनेगा
जो सदियों याद रखेगा
इतिहास की इस दुखद याद के साथ
नया कुछ निर्माण फिर हौसलों को उड़ान देगा। 

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